'भावना'
-मनीष प्रताप सिंह राजावत
प्यार इसको करो, ये तो मेहमान है | |
धड़कनों में जिये, बंधनों में बंधे |
जैसे शदियों पुरानी, ये पहचान है||
प्यार इतना किया, होंठ खामोश हैं |
गालों की शुर्खियाँ, मन तो मदहोश है ||
वक्त का फासला, अब भी अनजान है |
वो मुबारक घड़ी, फिर मेहरबान है ||
साल के सारे दिन, बस तेरे नाम हैं |
चाहतों का सफर, फिर कदरदान है ||
दुनिया वालो मुझे, आज रोको नहीं |
आज महफिल मेरी, बस मेरे नाम है ||
अलहड़ बहती सरिता तुम, मै सागर का अंजाम हूँ |
तुम सीने की धड़कन हो, मै उसका एक गान हूँ ||
तुम तो एक सवेरा हो, मै जिसकी ढलती शाम हूँ |
तुम उस दीपक की बाती, जलने में जिसकी जान है ||
ये सफर जिंदगी, एक अरमान है |
मैं तेरा जिस्म हूँ, तू मेरी जान है||
हमसफ़र तेरे बिन, न हो कोई सफर |
आखरी सांस तक, बस ये अरमान है ||
गम की धुंधली छटा, या ख़ुशी की पवन है |
ज़िंदगी में मेरी, बस तेरा नाम है ||