नमस्तुभ्यं वीणापुस्तक धारिणीम्। ज्ञानर्चक्षुर्न्मीलि देवि सुत सेवक शरणागत:।। मैं मनीष प्रताप सिंह राजावत, मुझे पाला है गुमनामी के अँधेरे ने वरना चिराग कहाँ म्यशयर थे भोर की किरण बताने को ... ओज को जोश देता हूँ शब्द को धार देता हूँ I लिखा जो भी कभी मैंने बगावत नाम देता हूँ II ठहर जाये जो हलचल और वीराना बाहें फैला दे I ज्वार बनें तब छंद मेरे हर दिल में क्रांति फैला दे II बस यही परिचय मेरा, बस यही परिणय मेरा।।$II
रविवार, 6 सितंबर 2020
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
महाकवि नीरज जी को समर्पित हमारी कविता '' हमने अपनी आज़ादी को, पल पल रोते देखा है ''...कवि मनीष सुमन
"प्यार की धरती अगर बन्दूक से बांटी गयी तो एक मुर्दा शहर अपने दर्मिया रह जायेगा " - राष्ट्रकवि गोप...
-
"प्यार की धरती अगर बन्दूक से बांटी गयी तो एक मुर्दा शहर अपने दर्मिया रह जायेगा " - राष्ट्रकवि गोप...