रविवार, 21 जून 2020

बन परशुराम का परशू तू, अब नहीं कोई रुकने वाला ॐ


अखंड भारत की आज अस्मिता ,फिर खतरे में आई है ।
कभी शहादत पुलवामा की, फिर गलवान घाटी दोहराई है ॥
रंग भले हो होली के, पर खुशबू लहू से आई है ।
क़ुरबानी अमर शहीदों की, जो हमे जगाने आई है॥
एक बार फिर बुजदिल सेना, गजनी गौरी लायी  है ।
गीधर और सियारो मैं,  अब किसकी शामत आयी है॥
मरने वाले थे ४०-४२, संख्या नहीं गिनाएंगे ।
धिक्कार हमें  है जन्म भूमि की, जो बदला नहीं चुकाएंगे ॥
होगी तभी शहादत पूरी, जब बैरी का निशां मिटायेंगे ।
दुश्मन के सीने तक पर , जय भारत माँ लिख आएंगे॥
वो अखंड भारत का गौरव, भारत के सर का ताज है ये ।
कश्मीर नहीं जागीर मात्र, भारत की सांसों का द्वार है ये॥
लाचारी थी सन सैतालिश की, होगी मजबूरी गाँधी नेहरू की ।
इतिहास को न दोहराहेगें, उस गौरव को आज जगाएँगे॥
कश्मीर नहीं अब विषय वार्ता, दो विधान नहीं रह पायेंगे ।
दो तलवारे एक म्यान, अब और नहीं रख पाएंगे ॥
आर्यवर्त का खून है ये, पुरुवंशज हम बतलायेंगे ।
पुरातनी सीमाएं हिन्द की, पेशावर, कंधार तक ले जायेंगे ॥
सीमाएं कितनी सिमट गयीं, क्या भविष्य माफ कर पायेंगे ।
जब बच्चे हमसे पूछेंगे, क्या एलओसी पर ही रुक जायेंगे ॥
ये भारत है भरत पुत्रों का, शेरों के दांत जो गिनते थे ।
और मुँह की खानी पड़ती थी, सिंधु को पार जो करते थे ॥
मत भूलो बन्दा बैरागी, गुरुपुत्रों के बलिदानों को ।
दीवारे सरहिंद की कहती है, कर लो पैदा तूफानों को ॥
दुश्मन के वार से केवल अब, शीश नहीं कटवाएँगे।
वो नस्ल मिटा देंगे धरती से, जो तिरंगे को आंख दिखाएँगे ॥
गौरवशाली इतिहास यहाँ का, जो विश्वगुरु कहलाता था ।
वो अखंड भारत भूमि, जो भारत वर्ष कहलाता था ॥
वो दुश्मन है दुश्मन ही रहेंगे, कश्मीर की बात जो करते है ।
गद्दारों के लहू से पैदा, हम पर प्रहार जो करते है ॥
वक्त आ गया है लोगों अब, इनको पाठ पढ़ाने का ।
जो पहन मुखौटा भाई का, बटवारे की बात जो करते है ॥
सरहद पर संकट आ जाये, और काले बादल छा जायें ।
अपने कर दें विश्वासघात, सीने पर खंजर चुभ जायें॥
कर देंगे धड़ से शीश अलग, या अपनी लाश बिछा देंगे 
सुन लो फतवा दुनिया वालो, अब हर दुश्मन को मिटा देंगे
बन बुद्ध बहुत उपदेश दे दिए, अब नहीं कोई सुनने वाला।
बन परशुराम का परशू तू, अब नहीं कोई रुकने वाला ॥
अनुयायी जो रहे बुद्ध के, क्या वो भी आँख दिखायँगे।
रण सीखे हम मातृगर्भ में, वो हमको रण सिखलाऐंगे॥
नापाक इरादे पाक चाइना, क्षणभंगुर हो जायेंगे 
सांसें गिरवी रख देंगे वो,  जब सोता शेर जगाएंगे ॥
पाक परस्ती यारों को, शेरों की जुबां सिखाएँगे।
वो थर थर डरकर भागेंगे, जब हम कुरक्षेत्र  सजायेंगे॥
हम पहले वार नहीं करते, बस इतनी सी मजबूरी है ।
गीता ज्ञाता यदुवंशी का, पालन वचन जरूरी है॥
इसीलिए ७० वर्षो से, एक पडो़सी भोंक रहा है।
दूजा उसका यार बना, यारी  का नाटक खेल रहा है ॥
हद की हद जो लाँघ गए, तो ऐसा सबक सिखाएंगे ।
पाक चाइना दोनों को, जन्नत की राह दिखायेंगें 
गद्दारों को गद्दारी भाषा में, ये समझा देंगे ।
मत छेड़ो नेत्र तीसरा पशुपति का, महाकाल बन जायेँगे॥
देश ध्वजा अब धर्म ध्वजा, बस इसका मान बढ़ाएंगे।
लहू बहाकर दुश्मन का, भारत का भाल सजायेंगे ॥ ॐ 


                                                           (By: Manish Pratap Singh Rajawat)

महाकवि नीरज जी को समर्पित हमारी कविता '' हमने अपनी आज़ादी को, पल पल रोते देखा है ''...कवि मनीष सुमन

 "प्यार की धरती अगर बन्दूक से बांटी गयी  तो  एक मुर्दा शहर अपने दर्मिया रह जायेगा "                               - राष्ट्रकवि गोप...