रविवार, 15 नवंबर 2020

वंदना वीणा वादिनी की

 


तू मेरा दीनदयाल, तू मेरा लड्डू गोपाल।

                             तू मेरा दीनदयाल, तू मेरा लड्डू गोपाल। 


ॐ भगवते वासुदेवाय नमा
                   तू मेरा दीनदयाल, तू मेरा लड्डू गोपाल। 

         तू मेरा दीनदयाल, तू मेरा लड्डू गोपाल। 

         तू मेरा दीनदयाल, तू मेरा लड्डू गोपाल। 

एक सलाम उनके नाम...........................Jai Hind

 एक सलाम उनके नाम

तस्वीर बनाने जो निकले, तकदीर सजाने जो निकले। 

कफ़न मौत को भी ढकने, मौत हारने जो निकले।। 

मनो तो एहसान ज़रा, इस खुदगर्ज ज़माने में। 

उन पर भी पत्थर फेंके  तुमने, जो कश्ती बने तूफानों में।। 

घर से निकले जो युद्धवीर, मानव अस्तिव बचाने में। 

बिगड़े तकदीर न भारत की, आशा की किरण जगाने में।। 

२४ घंटे सेवारत हैं, भारत तकदीर बचाने में।। 

क्यों थूक रहो हो नादानो, अपनी पहचान बताने में।। 

कौम पे कालिख मत पोतो, हिस्सा बनकर हैवानो मे। 

सहम रहीं सूनी गलियों, मंज़िल का पता बताने में।। 

जाने कितना वक्त लगेगा, उजड़ा चमन सजाने में। 

और कहाँ तक तपना होगा, जीवन रफ़्तार बढ़ाने में।। 

ध्वनि कलपुर्जो की बंद हो गयीं, लगा समय सुस्ताने में। 

रोज़ी रोटी का पता नहीं, कोरोना तेरे आने में।। 

देखो श्रमिकों के हाथों को, बेवक्त थके सुस्ताने में।

कर्मवीर का हुआ पलायन, पता नहीं अब आने में।। 

जलन नहीं चूल्हों में, अब चिंता भूख मिटाने में। 

मानव का दुश्मन मानव है, इस खुदगर्ज ज़माने में।। 

चक्र वक्त का थम सा गया है, इंसा तुझे जगाने में। 

वक्त भी अब बेवक्त हो गया, काली घटा हटाने में।। 

देवदूत बन गए चिक्त्सिक, सुने थे किस्से और फसाने में। 

ईश्वर का पैगाम बन गए, मानव  की जान बचाने में।। 

छोड़ के सुधबुध घर प्रियजन की, लगे हैं फ़र्ज़ निभाने में। 

खाकी पर भी गर्व हमें, आराम शब्द ठुकराने में।। 

हाहाकार मचा हर ओर, बस अपने प्राण बचाने में।

हर हिंदुस्तानी कैद हो गया, भारत की लाज बचाने में।। 

स्वर ऊँचा कर लिया मुल्क ने, अपना सरफरोश जगाने में। 

बच्चा बच्चा खड़ा हो गया, कोरोना तुझे हराने मे।। 

पर दुर्भाग्य कुटिल चतुराई, जिस ने फिर ली अंगड़ाई।

धर्म और पंथो की शिक्षा, यहाँ भी जिसको रोक न पाई।। 

मानव से मानवता हारी, समय देश का बन दुःखदाई। 

शर्म करो बेशर्मो कुछ तो, क्या खून में ही गद्दारी पाई।। 

कोरोना कोई धर्म,  जो देखेगा धर्म ज़माने में। 

मानव क्या स्वयं पहचान नहीं, क्यों पड़े हो राम रहीम बनाने में।। 

दुश्मन देखो मानवता के, जुट गए पत्थर बरसाने में। 

जिन हाथों में कैद है जीवन, खुद जीवन लगे मिटाने में।। 

ईश्वर आल्हा के नामों को,जो चले बेच हैवानों में। 

गीता कुरान की बात करें , भाड़े की भीड़ जुटाने में।। 

अंशमात्र भी शिकन नहीं, अपनों की लाश उठाने मे। 

क्या इससे बुरा समय होगा, राहों के फूल बिछाने में।। 

मानवता धर्म निभा जायें, मानव दुश्मन के हराने मे। 

सौगंध वतन की कहते हैं, भारत का भाग्य बनाने में।। 

सजदे उनको कर लो तुम, जो निकले अस्तिव बचाने में। 

मातृभूमि की खातिर जो, बेटे बन फ़र्ज़ निभाने में।।


                                                     By: Manish Pratap Singh Rajawat 

शनिवार, 14 नवंबर 2020

Respect to our Honourable Sir

 आदरणीय सर को समर्पित कुछ पंकितयाँ 

चलो कहानी सुनते हैं हम, पार्कर अमित निशान की। 

संघर्षो ने लिखी कहानी, जिसने हिंदुस्तान की।। 

झांकी तुम्हें दिखाते हैं हम, त्याग तपस्या नाम की। 

बाहर से शिव रौद्र भक्त, उस मानव सरल सुजान की।। 

                                        बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम 

कर्मछेत्र के रोडमैप पर, आशीष जी का साथ है।

अवसर सार्थक हो जाते हैं, शिव शंकर का हाथ है।। 

दिनचर्या के हर पहलु में, मेहनतकश की छाप है । 

कभी रुके न, कभी थके न, वो विश्वास की आब है।।

                                       बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम 

देखो ये तस्वीरों उनके, मेहनत की परिणाम की। 

पतझर में भी फूल उगाते, ऐसे सरल सुजान की।। 

ये है सबका साथ पुराना, दशकों से राहगीरों में। 

कितनों ने इतिहास लिखे थे, कभी भॅवर की धारों में।। 

                                       बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम 

तीन दशक से चमक रही छवि, व्यापारिक आयाम की। 

नर के नारायण सेवा, दीनों के कल्याण की।।

देखो कितने ठहरावों पर, लगा ये जीवन डोला था। 

पतझर के मौसम भी, लगा ये सावन बोला था।। 

                                       बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम 

कैसे रखी बात उन्होंने, सहकर्मी सम्मान की। 

बारीकी सिखलाते कैसे, बिसनेस की व्यवधान की।। 

कितनी कलियाँ पुष्प बनी थी, इस पावन बागान थी। 

कैसे शोभा बना गयी, वो पार्कर अमित निशान की।। 

                                       बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम

रखते हैं जो बात हमेशा, दीनों के सम्मान की। 

नहीं कोई होती छवि दूजी, करुणामय भगवान की।। 

पग पग पर जो तिमिर भगाते, गलती और अज्ञान की।

राह सुगम कर देते हैं, हर जड़रूपी इंसान की।। 

                                    बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम

पार्कर को जीवंत कर दिया, देकर छवि पहचान की। 

ये सौभाग्य हमारा है, इस जीवन के कल्याण की।। 

व्यापार जगत की कर सेवा, छवि भारत के सम्मान की। 

रख दी नीव उन्होंने देखो, प्यारे हिंदुस्तान की।। 

                                   बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम

तीन दशक से सेवा करते, व्यापारिक उथान की। 

दुनिया में वो नाम बढाते, भारत के अभिमान की।। 

सार्थकता को सार्थक करते, अर्थ जगत के नाम की। 

आदर्शो से रक्षा करते, पार्कर स्वाभिमान की।। 

                                   बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम

डगर कभी जो रुकी नहीं, मानव के उत्थान की। 

कार्य छेत्र के बने हैं सूरज, परिश्रम की पहचान की।। 

सर्वे भवन्तु सुखिना, और करुणा निधान की। 

परिश्रम से वो राह सजाते, भारत और विज्ञानं की।। 

                                  बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम

महाकर्म से महायोग, और महासेवा इंसान की। 

जीवन आगे बढ़ता है, जब जय हो अनुसन्धान की।। 

आओ नमन उनको करते हैं, सेवा और सम्मान की। 

ये धरती हैं जन्मस्थली, पार्कर अमित निशान की।। 

                                बढ़ते रहे कदम, कभी रुके न हम



महाकवि नीरज जी को समर्पित हमारी कविता '' हमने अपनी आज़ादी को, पल पल रोते देखा है ''...कवि मनीष सुमन

 "प्यार की धरती अगर बन्दूक से बांटी गयी  तो  एक मुर्दा शहर अपने दर्मिया रह जायेगा "                               - राष्ट्रकवि गोप...